HPLC Test in Hindi: उपयोग, निदान तकनीक और महत्वपूर्ण तथ्य

Medically Reviewed By
Dr Divya Rohra
Written By Komal Daryani
on Sep 12, 2023
Last Edit Made By Komal Daryani
on Mar 18, 2024

HPLC टेस्ट को आमतौर पर हाई परफॉरमेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी टेस्ट के नाम से जाना जाता है। यह टेस्ट परीक्षण आमतौर पर थैलेसीमिया सिंड्रोम का पता लगाने के लिए किया जाता है।
थैलेसीमिया (Thalassemia) एक विरासत में मिला हुआ ब्लड डिसऑर्डर होता है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood cells) का विनाश होता है। जिसकी वजह से किसी रोगी में हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओं की गिनती कम होने लग जाती है। अब यह डिसऑर्डर क्यों होता है? इसका इलाज क्या है? इसको होने से रोका जा सकता है? आइए जानते हैं।
थैलेसीमिया होने के कारण
थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है, जो इंसान के रक्त को प्रभावित करता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें यह रोग परिवार में एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक फैलता जाता है।
आमतौर पर एक स्वस्थ इंसान के शरीर में उसके बॉडी वेट का सात प्रतिशत खून होता है। यानी कि करीब 4.5 से 5.5 लीटर खून होता है। यह खून बोन मैरो में बनता है। लेकिन जिस रोगी को थैलेसीमिया हो जाता है, उसके शरीर में हीमोग्लोबिन में गड़बड़ी आ जाती है। इस से लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) नहीं बन पाते हैं और शरीर में खून की कमी होने लगती है।
थैलेसीमिया के प्रकार
थैलेसीमिया के प्रकार कुछ इस तरह है-
- अल्फा थैलेसीमिया: अल्फा थैलेसीमिया तब होता है जब किसी इंसान का शरीर अल्फा ग्लोबिन नामक प्रोटीन शरीर में नहीं बना पाता है। अल्फा ग्लोबिन बनाने के लिए, चार जीन (gene) होने चाहिए। यानी कि दोनों माता और पिता से दो जीन।
- अल्फा थैलेसिमिया माइनर: यह तब होता है जब एक या एक दो जीन मौजूद ही नहीं होते हैं। वहीं अगर किसी इंसान के शरीर में तीन जीन नहीं हैं तो ये हेमोग्लोबिन H नामक रोग होने की वजह बन जाती है।
- बीटा थैलेसीमिया: बीटा थैलेसीमिया तब होता है, जब हमारा शरीर बीटा ग्लोबिन नामक प्रोटीन को शरीर मे बना नहीं पाता है। दरअसल माता पिता से मिले दो जीन, बीटा ग्लोबिन बनाने के लिए जिम्मेदार होते है। लेकिन इसमें एक जीन का न होना थैलेसीमिया माइनर की वजह बन जाती है। जबकि दोनों जीनों का न होना एक गंभीर बीमारी का कारण बनती है, जिसे हम बीटा थैलेसीमिया के नाम से में जानते है।
बीमारी की गंभीरता के हिसाब से थैलेसीमिया को तीन प्रकार में बांटा गया हैं -
- थैलेसीमिया माइनर: यह थैलेसीमिया की शुरुआती हल्की स्टेज़ है। आमतौर पर इस स्टेज में मरीज़ को हल्का एनीमिया होता है। यह थैलेसीमिया माइनर किसी तरह की बीमारी नहीं होती बस इससे पीड़ित रोगियों को माइल्ड एनीमिया होता है।
- थैलेसीमिया इंटरमीडिया: यह दोनों बीटा ग्लोबिन जीन में बदलाव के वजह से विकसित होता है। इस बीमारी में रोगियों को माइल्ड से गंभीर लक्षण हो सकते हैं।
- थैलेसेमिया मेजर: यह बीमारी उन बच्चों को होती है जिनके माता और पिता दोनों के जींस में गड़बड़ी होती हैं। अगर माता और पिता दोनों को थैलेसीमिया माइनर हो तो होने वाले बच्चे को थैलेसीमिया मेजर होने का खतरा काफ़ी ज्यादा रहता है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों में एक साल के अंदर ही गंभीर एनीमिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
थैलेसीमिया की जाँच किसको को करानी चाहिए ?
- विवाह के पूर्व युवा ( 18-25 ) वर्ष की उम्र वाले
- ऐसे नव विवाहित जोड़े जो फॅमिली प्लानिंग की योजना बना रहें हों
- तीन महीने की गर्भवती महिलाएं
- माता पिता को या परिवार के किसी सदस्य को यदि थैलेसीमिया की हिस्ट्री रही हो
- कोई भी जिसे एनीमिया हो
थैलेसीमिया होने के लक्षण
थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों में कुछ आम लक्षण दिखते है, जैसे -
- छाती में दर्द होना, सांस लेने में तकलीफ होना
- दिल की धड़कन का कम या ज्यादा होना
- बच्चों के नाख़ून और जीभ पीली पड़ जाना
- अत्यधिक थकान
- भूख न लगना और चक्कर आना
- हड्डी की समस्या होना
- बढ़ा हुआ लीवर
- कमजोरी और थकावट का बने रहना,मांसपेशियों में दर्द रहना
जब किसी व्यक्ति में थैलेसीमिया के शुरुआती लक्षण दिखते है, जैसे 2 दिनों से ज्यादा समय तक तेज बुखार, उल्टी, दस्त हो तो तुरंत इन लक्षणों को नजरअंदाज न करते हुए डॉक्टर से मिलें।
HPLC टेस्ट क्या है
HPLC हीमोग्लोबिन क्रोमेटोग्राफी से ब्लड में ‘Hb A2’ को मापने के लिए एक सफल ब्लड टेस्ट है। इस टेस्ट को करने के लिए किसी विशेष तैयारी की जरुरत नहीं होती यह टेस्ट किसी भी दिन किसी भी समय किया जा सकता है। यह एक आसान ब्लड टेस्ट है,इसलिए इसे करने में कोई खतरा नहीं है।
यदि ‘Hb A2’ का स्तर कम से कम 3.8 है तो आप थैलेसीमिया माइनर नहीं हैं।
थैलेसीमिया का इलाज
थैलेसीमिया की इस बीमारी को स्वस्थ रहने की आदतों और जीवनशैली में बदलाव लाकर, आगे बढ़ने से रोका जा सकता हैं। इन सब के अलावा थैलेसीमिया का इलाज करने के लिए, यह कदम उठाए जाते हैं।
- खून चढ़ाना - थैलेसीमिया की बीमारी के उपचार के लिए रोगी को खून चढाने की जरूरत होती हैं। कुछ रोगियों को तो हर 10 से 15 दिन में खून चढ़ाना पड़ता हैं। इसके अलावा थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों में उम्र के साथ-साथ खून की ज़रूरत और भी बढ़ती रहती हैं।
- लुस्पेटरसेप्ट (Luspatercept) यह एक इंजेक्शन है जो हर तीन हफ़्ते में दिया जाता है। यह इंजेक्शन शरीर को अधिक लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद कर सकता है।
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट: बोन मैरो ट्रांसप्लांट या हेमेटोपोएटिक सेल ट्रांसप्लांट में बोन मैरो में थैलेसीमिया पैदा करने वाली कोशिकाओं को मिटाने के लिए हाई कीमोथेरेपी दिया जाता है। इनमें फिर डोनर से लिया गया स्वस्थ सेल्स को रोगी में इंजेक्ट किया जाता है।
- स्वस्थ आहार लें रोजाना स्वस्थ भोजन खाने से, ये आपको बेहतर महसूस करने और आपकी ऊर्जा को बढ़ाने में मदद कर सकता है। डॉक्टर से परामर्श करके आप नई लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद करने के लिए डाइट ले सकते हैं।
- फोलिक एसिड: फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स की खुराक लेने से आपके शरीर को स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद कर सकती है।
क्या थैलेसीमिया को रोका जा सकता है?
थैलेसीमिया की बीमारी को नहीं रोका नहीं जा सकता लेकिन इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता हैं। थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाने के लिए, आप यह टेस्ट करवा सकते हैं।
- HPLC टेस्ट
- कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी)
- हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस
- जेनेटिक टेस्टिंग



