Sickling Test in Hindi: सिक्ल सेल रोग की जांच और उपचार
Medically Reviewed By
Dr. Ragiinii Sharma
Written By Komal Daryani
on Apr 3, 2024
Last Edit Made By Komal Daryani
on Apr 3, 2024
खून में किसी भी कंपोनेंट की कमी या अधिकता कई बीमारियों को बढ़ावा दे सकती है। उन बीमारियों का पता लगाने के लिए डॉक्टर कई तरह के टेस्ट कराने के लिए कहते हैं, उन टेस्ट में से एक सिकलिंग भी है। सिकलिंग टेस्ट कौन से बीमारी के पता लगाने के लिए किया जाता है और इस टेस्ट में क्या-क्या होता है, इसकी पूरी जानकारी हम इस आर्टिकल में विस्तार से दे रहे हैं।
सिकलिंग टेस्ट क्या है?
सिकल सेल से संबंधित बीमारियों या लक्षणों का पता लगाने के लिए सिकलिंग टेस्ट का उपयोग किया जाता है। सिकल सेल रोग एक वंशानुगत (hereditary) रक्त स्थिति है जो विकार आरईसी बनाती है। रेड ब्लड सेल्स (आरबीसी) बाईकॉनकेव, डिस्क के आकार के ब्लड कंपोनेंट हैं जो शरीर के अलग-अलग भागों में ऑक्सीजन पहुंचाते हैं। हालाँकि, सिकल सेल रोग के रोगी में, आरबीसी क्रिसेंट सिकल के समान असामान्य आकार की होती है, इसलिए इसे सिकल सेल रोग कहा जाता है। चूंकि असामान्य आकार की आरबीसी में ऑक्सीजन ले जाने की कैपेसिटी कम हो जाती है, इसलिए व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है। सिकलिंग टेस्ट ब्लड में हीमोग्लोबिन के प्रकार को निर्धारित करता है।
सिकल सेल डिजीज (एससीडी) क्या है?
एससीडी वंशानुगत आरबीसी विकारों का एक समूह है। इस बीमारी का नाम सी-आकार के कृषि उपकरण के नाम पर रखा गया है जिसे हंसिया के नाम से जाना जाता है। सिकल कोशिकाएं अक्सर कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं। इससे रक्त के थक्के जमने का खतरा बढ़ सकता है। वे जल्दी मर भी जाते हैं, जिससे आरबीसी की लगातार कमी हो जाती है। ऐसे में एससीडी की स्थिति में निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकता है:
- एनीमिया, जो थकान का कारण बनता है
- सांस लेने में तकलीफ
- त्वचा और आँखों का पीला पड़ना
- समय-समय पर दर्द होना, जो अवरुद्ध रक्त प्रवाह के कारण होता है
- हाथ-पैर में सूजन दिखाई देना
- बार-बार इन्फेक्शन होना
- शरीर का धीमी गति से विकास होना
- आँखों की समस्या
सिकलिंग टेस्ट कितने प्रकार के होते हैं?
सिकल सेल डिजीज का निदान करने और इसकी गंभीरता निर्धारित करने के लिए कई प्रकार के परीक्षणों को किया जा सकता है। कुछ सामान्य परीक्षणों में ये शामिल हैं:
- हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस- यह परीक्षण रक्त में विभिन्न प्रकार के हीमोग्लोबिन को उनके इलेक्ट्रिकल चार्ज के आधार पर अलग करता है। यह असामान्य हीमोग्लोबिन की उपस्थिति की पहचान कर सकता है, जैसे कि हीमोग्लोबिन एस (सिकल सेल रोग में असामान्य हीमोग्लोबिन), और मौजूद हीमोग्लोबिन एस का प्रतिशत निर्धारित कर सकता है।
- कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी)- सीबीसी रक्त के विभिन्न कंपोनेंट्स को मापता है, जिसमें हीमोग्लोबिन लेवल, हेमाटोक्रिट (कुल रक्त मात्रा में लाल रक्त कोशिकाओं का अनुपात), वाइट ब्लड सेल काउंट और प्लेटलेट काउंट शामिल है। सिकल सेल रोग लाल रक्त कोशिकाओं के लगातार नुकसान के कारण हीमोग्लोबिन और हेमाटोक्रिट के निम्न स्तर को प्रकट कर सकता है।
- सिकल सेल सॉल्युबिलिटी टेस्ट- यह एक क्विक स्क्रीनिंग परीक्षण है जो इसकी घुलनशीलता विशेषताओं का आकलन करके असामान्य हीमोग्लोबिन, विशेष रूप से हीमोग्लोबिन एस की उपस्थिति का पता लगाता है।
- जेनेटिक टेस्टिंग- जेनेटिक टेस्टिंग हीमोग्लोबिन उत्पादन के लिए जिम्मेदार जीन में विशिष्ट म्यूटेशन की पहचान कर सकता है, जैसे एचबीबी जीन, जो बीटा-ग्लोबिन प्रोटीन का उत्पादन करता है। यह परीक्षण सिकल सेल रोग की उपस्थिति की पुष्टि कर सकता है और मौजूद विशिष्ट प्रकार के म्यूटेशन को निर्धारित कर सकता है।
- पेरीफेरल ब्लड स्मीयर- पेरीफेरल ब्लड स्मीयर लाल रक्त कोशिकाओं के आकार और संख्या का आकलन करने के लिए रक्त के सैंपल की एक माइक्रोस्कोपिक जांच है। सिकल सेल रोग में, लाल रक्त कोशिकाएं अक्सर हंसिया के आकार की दिखाई देते हैं।
- हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी द्वारा हीमोग्लोबिन फ्रैक्शनेशन- यह परीक्षण हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी का उपयोग करके रक्त में विभिन्न प्रकार के हीमोग्लोबिन को अलग करता है और मात्रा निर्धारित करता है। यह हीमोग्लोबिन एस सहित असामान्य हीमोग्लोबिन वेरिएंट की पहचान कर सकता है।
सिकलिंग टेस्ट क्यों किया जाता है?
सिकल सेल से संबंधित बीमारियों का पता लगाने के लिए सिकलिंग टेस्ट किया जाता है। ये बीमारियां कुछ इस तरह से हैं।
- हीमोग्लोबिन एसबी+ (बीटा) थैलेसीमिया
- रक्त में लाल कोशिकाओं की कमी
- हीमोग्लोबिन एससी रोग
- नवजात शिशुओं में सिकल सेल लक्षणों की जांच
सिकलिंग टेस्ट की प्रक्रिया
सिकलिंग टेस्ट के लिए सामान्य रक्त परीक्षण किया जाता है, जिसमें डॉक्टर द्वारा रक्त का सैंपल एकत्र किया जाता है। बांह की नस से रक्त निकालने के लिए एक सिरिंज का उपयोग किया जाता है। फिर सावधानी के लिए हाथ को अल्कोहल स्वैब या एंटीसेप्टिक घोल से साफ किया जाता है। रक्त के सैंपल को टेस्ट ट्यूब में डालकर लैब में परीक्षण किया जाता है, जिससे कि सिकल सेल रोग संबंधित समस्या का पता चल जाता है। टेस्ट के दौरान सिरिंज लगाने पर मरीजों को हल्का दर्द महसूस हो सकता है, जो जल्द ही कम हो जाएगा। साथ ही खून बहने से बचने के लिए, रक्त निकालने के बाद बांह पर रुई की पट्टी लगा सकते हैं।
सिकलिंग टेस्ट से पहले की तैयारी
कुछ मामलों में डॉक्टर सिकलिंग टेस्ट से पहले कुछ न खाने की सलाह देते दे सकते हैं। साथ ही अगर आप किसी तरह की दवाई या सप्लीमेंट ले रहे हैं, तो उन दवाइयों सप्लीमेंट्स को कुछ समय के लिए बंद करवा सकते हैं। इसलिए, अगर आप किसी तरह की दवाई या सप्लीमेंट ले रहे हैं, तो इस बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं और उनके निर्देश का पालन करें।
कई मामलों में डॉक्टर परीक्षण से कुछ देर पहले आपको खूब सारा पानी पीने के लिए कह सकते हैं, इससे रक्त निकालना आसान हो सकता है और सटीक परीक्षण परिणाम पाने में मदद मिल सकती है।
सिकलिंग टेस्ट से संबंधित जोखिम
सिकल सेल टेस्ट एक सामान्य ब्लड टेस्ट है। रक्त निकालने के दौरान सुई चुभाने पर हल्की दर्द महसूस हो सकती है। साथ ही कुछ लोगों को परीक्षण के बाद चक्कर महसूस हो सकता है, लेकिन कुछ मिनटों के लिए बैठेंगे पर ये लक्षण दूर हो सकते हैं। कुछ मामलों में सुई वाले जगह पर संक्रमण होने की संभावना होती है, लेकिन परीक्षण से पहले इस्तेमाल किया जाने वाला अल्कोहल स्वाब आमतौर पर इस समस्या से बचाए रखती है।
सिकलिंग टेस्ट के बाद रक्त में पाए जाने वाले किसी तत्व की कमी होने पर उस तत्व की पूर्ति करने के लिए प्राकृतिक तरीके को अपना सकते हैं। इसके लिए उचित डाइट का सहारा ले सकते हैं। सही डाइट का चयन करने के लिए डाइटीशियन की मदद ले सकते हैं। ऐसे ही हेल्थ से जुड़ी अन्य जानकारी के लिए Redcliffe के वेबसाइट पर पब्लिश ब्लॉग्स को पढ़ सकते हैं।