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क्रिएटिनिन कितना होने पर डायलिसिस होता है?

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क्रिएटिनिन कितना होने पर डायलिसिस होता है?

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Medically Reviewed By
Dr. Mayanka Lodha Seth

Written By Komal Daryani
on Oct 7, 2025

Last Edit Made By Komal Daryani
on Oct 8, 2025

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किडनी हमारे शरीर का एक बेहद जरूरी अंग है, जो खून को साफ करने, अतिरिक्त पानी और जहरीले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करती है। लेकिन जब किडनी ठीक से काम करना बंद कर देती है, तो शरीर में क्रिएटिनिन जमा होने लगते हैं। यही स्थिति धीरे-धीरे गंभीर बन जाती है और मरीज को डायलिसिस की जरूरत पड़ती है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, क्रिएटिनिन कितना बढ़ जाए तो डायलिसिस करना जरूरी हो जाता है?

अगर इस सवाल का जवाब आपके पास नहीं है, तो इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि डायलिसिस क्या है, कब इसकी जरूरत पड़ती है, और क्रिएटिनिन के किन स्तरों पर डॉक्टर यह प्रक्रिया शुरू करने की सलाह देते हैं।

क्रिएटिनिन क्या है?

क्रिएटिनिन एक अपशिष्ट पदार्थ (waste product) है जो हमारी मांसपेशियों में ऊर्जा उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया के दौरान बनता है। यह रक्त के ज़रिए किडनी तक पहुंचता है और फिर यूरिन के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है।

यदि आपकी किडनी ठीक तरह से काम कर रही है, तो शरीर में क्रिएटिनिन का स्तर नियंत्रित रहता है। लेकिन यदि किडनी की कार्यक्षमता घट जाती है, तो क्रिएटिनिन धीरे-धीरे शरीर में जमा होने लगता है। ऐसा तब होता है जब किडनी सामान्य काम का केवल 10 से 15% ही करती है।

क्रिएटिनिन का सामान्य स्तर कितना होता है?

व्यक्ति का प्रकारसामान्य क्रिएटिनिन स्तर (mg/dL)
पुरुष0.7 – 1.3 mg/dL
महिलाएं0.6 – 1.1 mg/dL
बच्चे0.3 – 0.7 mg/dL

क्रिएटिनिन का स्तर व्यक्ति की आयु, लिंग, मांसपेशियों की मात्रा और शारीरिक गतिविधि पर भी निर्भर करता है। हल्का-फुल्का उतार-चढ़ाव सामान्य माना जा सकता है, लेकिन लगातार बढ़ता हुआ स्तर किडनी रोग की ओर इशारा करता है।

क्रिएटिनिन क्यों बढ़ता है?

क्रिएटिनिन के बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं:

  • क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD)
  • डिहाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी)
  • मांसपेशियों की अत्यधिक टूट-फूट
  • कुछ दवाएं या सप्लीमेंट्स (जैसे NSAIDs, क्रिएटिन पाउडर)
  • डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर के कारण किडनी पर दबाव
  • यूरीन में रुकावट (जैसे पथरी)

डायलिसिस क्या होता है?

डायलिसिस एक मेडिकल प्रक्रिया है, जिसमें किडनी की खराबी के कारण शरीर से अपशिष्ट पदार्थ, अतिरिक्त पानी और विषैले तत्वों को मशीन के माध्यम से बाहर निकाला जाता है।

जब किडनी 85% से अधिक काम करना बंद कर देती है और शरीर में क्रिएटिनिन, यूरिया, पोटेशियम जैसे तत्व अत्यधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं, तब डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है।

डायलिसिस के दो प्रकार होते हैं:

  • हेमोडायलिसिस (रक्त से विषैले पदार्थ बाहर निकालना)
  • पेरिटोनियल डायलिसिस (पेट की झिल्ली के जरिए साफ-सफाई)

क्रिएटिनिन कितना होने पर डायलिसिस होता है 

यह सवाल अक्सर पूछा जाता है, लेकिन इसका उत्तर केवल एक संख्या नहीं है। डायलिसिस शुरू करने का निर्णय सिर्फ क्रिएटिनिन के स्तर पर आधारित नहीं होता, बल्कि इन बातों पर निर्भर करता है:

क्रिएटिनिन का स्तर

आमतौर पर जब क्रिएटिनिन का स्तर 5 mg/dL से ऊपर पहुंच जाता है, तो यह खतरे का संकेत होता है। यदि यह 8-10 mg/dL से अधिक हो जाए और साथ में लक्षण भी दिखें, तो डॉक्टर डायलिसिस शुरू करने पर विचार करते हैं।

GFR (Glomerular Filtration Rate)

GFR यह बताता है कि किडनी रक्त को कितनी अच्छी तरह छान रही है। जब GFR 15 ml/min से कम हो जाए, तो इसे किडनी फेलियर की स्थिति माना जाता है और डायलिसिस जरूरी हो सकता है।

किडनी फेल होने के लक्षण

जब किडनी सही तरीके से काम करना बंद कर देती है, तो शरीर कई तरह के संकेत देने लगता है। इन संकेतों को पहचानना और समय रहते इलाज करवाना बेहद जरूरी होता है। किडनी फेलियर के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं:

हर समय थकावट महसूस होना - बिना किसी मेहनत के भी शरीर कमजोर और थका हुआ लगता है।

सांस लेने में कठिनाई - शरीर में पानी जमा होने के कारण फेफड़ों पर दबाव बढ़ता है, जिससे सांस फूलने लगती है।

यूरिन में खून आना- पेशाब के रंग में बदलाव या उसमें खून आना एक गंभीर संकेत हो सकता है।

पेशाब की मात्रा में कमी - किडनी सही से फिल्टर नहीं कर पाती, जिससे पेशाब बहुत कम आता है।

लगातार मतली या उल्टी जैसा महसूस होना- शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने से पेट खराब रहने लगता है।

पैरों और टखनों में सूजन आना- शरीर में फ्लूइड रिटेंशन के कारण हाथ-पैरों में सूजन हो जाती है।

डायलिसिस करवाने के संभावित नुकसान

डायलिसिस एक जीवन रक्षक प्रक्रिया है, लेकिन इसके साथ कुछ दुष्प्रभाव या समस्याएं भी हो सकती हैं, खासकर जब यह लंबे समय तक किया जाए। कुछ सामान्य साइड इफेक्ट्स इस प्रकार हैं:

वजन बढ़ना - डायलिसिस के दौरान तरल पदार्थों के असंतुलन से वजन बढ़ सकता है।

हर्निया की समस्या - खासकर पेरिटोनियल डायलिसिस में पेट की झिल्ली पर दबाव बढ़ने से हर्निया हो सकता है।

मांसपेशियों में ऐंठन या दर्द - शरीर से इलेक्ट्रोलाइट्स के असंतुलन के कारण मांसपेशियों में जकड़न महसूस हो सकती है।

ब्लड प्रेशर का गिरना- डायलिसिस के दौरान कभी-कभी रक्तचाप बहुत कम हो जाता है, जिससे चक्कर या बेहोशी भी आ सकती है।

क्या डायलिसिस के दौरान दर्द होता है?

अधिकतर मामलों में डायलिसिस एक बिना दर्द वाली प्रक्रिया होती है। प्रक्रिया के दौरान आमतौर पर किसी प्रकार का सीधा शारीरिक दर्द नहीं होता। लेकिन कुछ लोगों को डायलिसिस के बाद कुछ असहजता या हल्की समस्याएं महसूस हो सकती हैं, जैसे:

  • ब्लड प्रेशर का गिरना
  • मांसपेशियों में ऐंठन या दर्द
  • मुंह सूखना या शरीर में खुजली
  • चक्कर आना या घबराहट
  • संक्रमण का खतरा (विशेष रूप से हेमोडायलिसिस में)

इन लक्षणों की तीव्रता हर व्यक्ति में अलग हो सकती है। इसलिए डॉक्टर की निगरानी और सही देखभाल बेहद ज़रूरी होती है।

डायलिसिस कब न टालें?

यदि आपके शरीर में नीचे दिए गए लक्षण या संकेत दिखें, तो सतर्क हो जाएं-

  • यूरिया > 100 mg/dL
  • क्रिएटिनिन > 9–10 mg/dL
  • उल्टी, थकान, सांस लेने में तकलीफ
  • पेशाब एकदम बंद हो जाना
  • दिल की धड़कन में गड़बड़ी

तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डायलिसिस न टालें, क्योंकि विषैले तत्व शरीर को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

इसलिए जरूरी है कि केवल क्रिएटिनिन का आंकड़ा देखकर न घबराएं, बल्कि संपूर्ण जांच और विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही अगला कदम उठाएं। जल्दी पहचान और सही इलाज से न केवल डायलिसिस टाला जा सकता है, बल्कि जीवन को बेहतर किया जा सकता है।

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